Wednesday, June 26, 2019

श्री हनुमान चालीसा ( सम्पूर्ण )

॥ श्री हनुमान चालीसा॥ 

॥ दोहा ॥

श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि । 
बरनौ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौ पवनकुमार ।
बल बुधि विधा देहु मोहि, हरहु कलेस विकार ॥

॥ चौपाई ॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महावीर विक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥३॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुंडल कुंचित केसा ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥५॥
शंकर सुवन केसरी नंदन । तेज प्रताप महा जग बंदन ॥६॥
विद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥
लाय सञ्जीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
यम कुबेर दिक्पाल जहाँ ते । कबी कोबिद कहि सकैं कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥१६॥
तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना । लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्र योजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब सुख लहै तुम्हारी शरणा । तुम रक्षक काहू को डरना ॥२२॥
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनौं लोक हाथ ते काँपे ॥२३॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥२५॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै । सोहि अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु संत के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥३०॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन्ह जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अंत काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥३५॥
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
जै जै जै हनुमान गुसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥
जो यह शत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढे हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥
        ॥दोहा॥
पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥
॥ इति ॥
सियापति रामचन्द्र की जय । पवनसुत हनुमान की जय ॥
सब सन्तन की जय भक्तन की जय ॥
मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।
जा पर कृपा राम की होई, ता पर कृपा करे सब कोई ।
मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ॥

ॐ आञ्जनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि । तन्नो हनुमत् प्रचोदयात् ॥
ॐ दाशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि । तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥

॥ हरिः ॐ तत्सत् ॥

॥ शुभमस्तु ॥

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