Wednesday, June 26, 2019

श्री हनुमान चालीसा ( सम्पूर्ण )

॥ श्री हनुमान चालीसा॥ 

॥ दोहा ॥

श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि । 
बरनौ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौ पवनकुमार ।
बल बुधि विधा देहु मोहि, हरहु कलेस विकार ॥

॥ चौपाई ॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महावीर विक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥३॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुंडल कुंचित केसा ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥५॥
शंकर सुवन केसरी नंदन । तेज प्रताप महा जग बंदन ॥६॥
विद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥
लाय सञ्जीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
यम कुबेर दिक्पाल जहाँ ते । कबी कोबिद कहि सकैं कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥१६॥
तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना । लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्र योजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब सुख लहै तुम्हारी शरणा । तुम रक्षक काहू को डरना ॥२२॥
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनौं लोक हाथ ते काँपे ॥२३॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥२५॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै । सोहि अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु संत के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥३०॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन्ह जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अंत काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥३५॥
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
जै जै जै हनुमान गुसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥
जो यह शत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढे हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥
        ॥दोहा॥
पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥
॥ इति ॥
सियापति रामचन्द्र की जय । पवनसुत हनुमान की जय ॥
सब सन्तन की जय भक्तन की जय ॥
मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।
जा पर कृपा राम की होई, ता पर कृपा करे सब कोई ।
मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ॥

ॐ आञ्जनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि । तन्नो हनुमत् प्रचोदयात् ॥
ॐ दाशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि । तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥

॥ हरिः ॐ तत्सत् ॥

॥ शुभमस्तु ॥

श्री राम रक्षा स्तोत्रम्‌

॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥
॥ श्रीगणेशायनम: ॥
॥ विनियोगः ॥
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमहामन्त्रस्य । बुधकौशिक ऋषिः ।
श्रीसीतारामचन्द्रो देवता ।
अनुष्टुप् छन्दः । सीता शक्तिः । श्रीमद् हनुमान् कीलकम् ।
श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ॥
॥ अथ ध्यानम् ॥

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं । 
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामांकारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं।
नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥

॥ इति ध्यानम् ॥

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ । 
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥१॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ । 
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमंडितम्‌ ॥२॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरांतकम्‌ । 
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥३॥
रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌ । 
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥४॥
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती । 
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥५॥
जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवंदितः । 
स्कंधौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥६॥
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌ । 
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥७॥
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः । 
उरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत्‌ ॥८॥
जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तकः । 
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥९॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्‌ । 
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌ ॥१०॥
पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः । 
न दृष्टुमति शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥११॥
रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्‌ । 
नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाऽभिरक्षितम्‌ । 
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥१३॥
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌ । 
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥१४॥
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः । 
तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥१५॥
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्‌ । 
अभिरामस्रिलोकानां रामः श्रीमान्स नः प्रभुः ॥१६॥
तरुणौ रूप सम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ । 
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ । 
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
शरण्यौ सर्र्र्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌ । 
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥१९॥
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंगसंगिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥२०॥
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा । 
गच्छन् मनोरथान्नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥२१॥
रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली । 
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥२२॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः । 
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥२३॥
इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयाऽन्वितः । 
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥२४॥
रामं दूवार्दलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्‌ । 
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः ॥२५॥
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌ ।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ॥२६॥
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे । 
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥२७॥
श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम 
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचंसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयलुर्नान्यं 
जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा । 
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वंदे रघुनन्दनम्‌ ॥3१॥
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥3२॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌ ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
कूजन्तं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ । 
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्‌ । 
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३5॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्‌ । 
तर्जनं यमदूतानां राम रामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥
रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रामेशं भजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥

इति श्रीबुधकौशिकमुनिविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

॥ श्री सीतारामचन्द्रार्पणमस्तु ॥


॥ हरिः ॐ तत्सत् ॥

॥ शुभमस्तु ॥

श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्रम्

श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्रम्

॥  श्रीगणेशाय नम: ॥


  नारद उवाच 

प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् । 
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायु:कामार्थसिद्धये ॥ १ ॥॥


प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् । 
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्

लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च । 
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ॥३॥

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् । 
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ॥४॥

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर: । 
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥५॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् । 
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥६

जपेत् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत् । 
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत्  
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:

इति श्री नारदपुराणे संकटनाशन श्रीमहागणपति स्तोत्रम् संपूर्णम् ।


गजाननं भूतगणादि सेवितं, कपित्थ जम्बूफलचारु भक्षितम् ।
उमासुतं शोक विनाशकारणं, नमामि विघ्नेश्वर पादपङ्कजम् ॥

Monday, March 10, 2014

ओ३म् "ॐ" या ओंकार, OM, AUM, ONKAR

ओ३म् "ॐ" या ओंकार, OM, AUM, ONKAR


अक्षरका अर्थ जिसका कभी क्षरण न हो । ऐसे तीन अक्षरों— अ उ और म से मिलकर बना है ॐ। माना जाता है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्डसे सदा ॐ की ध्वनी निसृत होती रहती है। हमारी और आपके हर श्वास से ॐ की ही ध्वनि निकलती है । यही हमारे-आपके श्वास की गति को नियंत्रित करता है । माना गया है कि अत्यन्त पवित्र और शक्तिशाली है ॐ । किसी भी मंत्र से पहले यदि ॐ जोड़ दिया जाए तो वह पूर्णतया शुद्ध और शक्ति-सम्पन्न हो जाता है । किसी देवी-देवता, ग्रह या ईश्वर के मंत्रों के पहले ॐ लगाना आवश्यक होता है, जैसे, श्रीराम का मंत्र — ॐ रामाय नमः, विष्णु का मंत्र — ॐ विष्णवे नमः, शिव का मंत्र — ॐ नमः शिवाय, प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि ॐ से रहित कोई मंत्र फलदायी नही होता , चाहे उसका कितना भी जाप हो। मंत्र के रूप में मात्र ॐ भी पर्याप्त है। माना जाता है कि एक बार ॐ का जाप हज़ार बार किसी मंत्र के जाप से महत्वपूर्ण है । ॐ का दूसरा नाम प्रणव ( परमेश्वर ) है। "तस्य वाचकः प्रणवः" अर्थात् उस परमेश्वर का वाचक प्रणव है। इस तरह प्रणव अथवा ॐ एवं ब्रह्म में कोई भेद नहीं है। ॐ अक्षर है इसका क्षरण अथवा विनाश नहीं होता ।

ओ ओंकार आदि मैं जाना ।


लिखि औ मेटें ताहि ना माना ।।


ओ ओंकार लिखे जो कोई ।


सोई लिखि मेटणा न होई ।।


गुरु नानक देव जी ने ॐ के महत्वको प्रतिपादित करते हुए लिखा है —


"ओम सतनाम कर्ता पुरुष निभौं निर्वेर अकालमूर्त"


यानी ॐ सत्यनाम जपनेवाला पुरुष निर्भय, बैर-रहित एवं "अकाल-पुरुष के" सदृश हो जाता है ।


"ॐ" ब्रह्माण्ड का नाद है एवं मनुष्य के अन्तर में स्थित ईश्वर का प्रतीक । 

Sunday, March 9, 2014

Panchakshara , Shiva and enjoy His Bliss.

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय
तस्मै नकाराय नमः शिवाय ॥१॥
Naagendra-Haaraaya Tri-Locanaaya
Bhasma-Angga-Raagaaya Mahe[a-Ii]shvaraaya |
Nityaaya Shuddhaaya Dig-Ambaraaya
Tasmai Nakaaraaya Namah Shivaaya ||1||

Meaning:
1.1: (Salutations to Him) Who has the King of Snakes as His Garland and Who has Three Eyes,
1.2: Whose Body is Smeared with Sacred Ashes and Who is the Great Lord,
1.3: Who is Eternal, Who is ever Pure and Who has the Four Directions as His Clothes, 
( signifying that He is ever Free ),
1.4: Salutations to that Shiva, Who is represented by syllable "Na", 
The first syllable of the Panchakshara mantra "Na-Ma-Shi-Va-Ya".

मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय
नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय
तस्मै मकाराय नमः शिवाय ॥२॥
Mandaakinii-Salila-Candana-Carcitaaya
Nandi-Iishvara-Pramatha-Naatha-Mahe[a-Ii]shvaraaya |
Mandaara-Pusspa-Bahu-Pusspa-Su-Puujitaaya
Tasmai Makaaraaya Namah Shivaaya ||2||

Meaning:
2.1: (Salutations to Him) Who is Worshipped with Water from the River Mandakini and Smeared with Sandal Paste,
2.2: Who is the Lord of Nandi and of the Ghosts and Goblins, the Great Lord,
2.3: Who is Worshipped with Mandara and Many Other Flowers,
2.4: Salutations to that Shiva, Who is represented by syllable "Ma", 
The second syllable of the Panchakshara mantra "Na-Ma-Shi-Va-Ya".

शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय 
दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय
तस्मै शिकाराय नमः शिवाय ॥३॥
Shivaaya Gaurii-Vadana-Abja-Vrnda-Suuryaaya 
Dakssa-Adhvara-Naashakaaya |
Shrii-Niilakanntthaaya Vrssa-Dhvajaaya
Tasmai Shikaaraaya Namah Shivaaya ||3||

Meaning:
3.1: (Salutations to Him) Who is Auspicious and Who is like the Sun Causing the Lotus-Face of Gauri (Devi Parvati) to Blossom,
3.2: Who is the Destroyer of the Sacrifice (Yajna) of Daksha,
3.3: Who has a Blue Throat and has a Bull as His Emblem,
3.4: Salutations to that Shiva, Who is represented by syllable "Shi", 
The third syllable of the Panchakshara mantra "Na-Ma-Shi-Va-Ya".

वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमूनीन्द्रदेवार्चितशेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय
तस्मै वकाराय नमः शिवाय ॥४॥
Vashissttha-Kumbhodbhava-Gautama-Aarya-Muuni-Indra-Deva-Aarcita-Shekharaaya |
Candra-Aarka-Vaishvaanara-Locanaaya
Tasmai Vakaaraaya Namah Shivaaya ||4||

Meaning:
4.1: (Salutations to Him) Who is Worshipped by the Best and most Respected Sages like Vashistha, Agastya and Gautama and also by the Gods and Who is the Crown of the Universe,
4.2: (Salutations to Him) Who has the Chandra (Moon), Surya (Sun) and Agni (Fire) as His Three Eyes,
4.3: Salutations to that Shiva, Who is represented by syllable "Va", 
The fourth syllable of the Panchakshara mantra "Na-Ma-Shi-Va-Ya".

यज्ञस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
तस्मै यकाराय नमः शिवाय ॥५॥
Yajnya-Svaruupaaya Jattaa-Dharaaya
Pinaaka-Hastaaya Sanaatanaaya |
Divyaaya Devaaya Dig-Ambaraaya
Tasmai Yakaaraaya Namah Shivaaya ||5||

Meaning:
5.1: (Salutations to Him) Who is the Embodiment of Yajna (Sacrifice) and Who has Matted Hairs,
5.2: Who has the Trident in His Hand and Who is Eternal,
5.3: Who is Divine, Who is the Shining One and Who has the Four Directions as His Clothes (signifying that He is ever Free,
5.4: Salutations to that Shiva, Who is represented by syllable "Ya", 
The fifth syllable of the Panchakshara mantra "Na-Ma-Shi-Va-Ya".

पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ ।
शिवलोकमावाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥६॥
Pan.caakssaram-Idam Punnyam Yah Patthe-Shiva-Samnidhau |
Shivalokam-Aavaapnoti Shivena Saha Modate ||6||

Meaning:
6.1: Whoever Recites this Panchakshara (hymn in praise of the five syllables of Na-Ma-Shi-Va-Ya) near Shiva (Lingam),
6.2: Will Attain the Abode of Shiva and enjoy His Bliss.
    

गुरु प्रेरणा से

गुरु प्रेरणा से:

जय श्री गुरुजी महाराज...


खाक मुझ में कोई कमाल रखा है,

मेरे गुरूजी मुझे तो तूने संभाल रखा है...

मेरे ऐबों पे डाल के पर्दा,

मुझे अच्छों में डाल रखा है...

मेरा नाता अपने से जोड़ के,

तूने मेरी हर मुसीबत को टाल रखा है...

मैं तो कब का मिट गया होता,

गुरूजी मेरे सच्चे पातशाह बस तेरी रहमतों ने मुझे संभाल रखा है...

जय जय गुरू जी की


Guruji Ψ_ॐ_Charna Di Mauj Badi_ੴ_Ψ

Jai Guruji! Guruji Bol! Guruji.

Saturday, March 8, 2014